धर्ममय जीवन (बृहदाँक) वेदज्ञान व वैदिक कर्मकाण्ड का दिग्दर्शन कराती व्यक्ति व राष्ट्र निर्माण की अनुपम पुस्तक है। ईश्वर द्वारा प्रदत्त वैदिक ज्ञान ऋषियों की तपस्या से छंद व व्याकरण की विशेषताओं से अक्षुण्य रह सका। महर्षि दयानंद के तपस्वरूप सत्यार्थ के साथ यह वैदिक ज्ञान रूपी अमृत आज सर्वसुलभ है । महर्षि द्वारा पंचमहायज्ञ की पद्धति व वेद मंत्रों की अद्भुत क्षमता से मनुष्यों की आत्मोन्नति ,परिवार,समाज व राष्ट्र के विज्ञान सम्मत सर्वांगीण विकास व चिंतन की वैदिक योजना प्राप्त होती है। बृहदाँक परिशिष्ट में महर्षि व लेखक के अनमोल साहित्य के साथ यजुर्वेद के कुछ अध्यायों के महर्षि कृत भावार्थों को सम्मिलित किया गया है।
धर्ममय जीवन व सत्संग सुमन के लेखक कृष्ण स्वरूप जी वैद्य ने गुरुकुल विश्वविद्यालय वृंदावन के सुरम्य वैदिक परिवेश में शिक्षा प्राप्त की थी।ब्रह्मचारी जीवन में हैदराबाद आर्य सत्याग्रह में भाग लिया।वेद व आयुर्वेद में उनकी मर्मज्ञता थी। उनकाआधुनिक संदर्भ में वेद मंत्रो के अर्थों का प्रस्तुतीकरण मंत्र के यथार्थ बोध कराने में अद्भुत है। वेद के साथ आयुर्वेद में लगभग ९०० निजी सफल प्रयोग ,उनका मनीषी जीवन, वेद आयुर्वेद एवं सामाजिक विषयों के साथ प्रकाम्य पत्रिका का सम्पादन,जनपद के उदीयमान कवियों को मंच व विभिन्न सामाजिक कार्यों में सक्रिय प्रतिभाग उनके महत्वपूर्ण योगदान के साथ उनको ऋषि परम्परा में स्थापित करते हैं व उनके द्वारा आयुर्वेद पर ‘मेरे अनुभूत प्रयोग‘ परिवार राष्ट्रनिर्माण हेतु धर्ममय जीवन व पंचमहायज्ञ हेतु ‘सत्संग सुमन‘ महत्वपूर्ण हैं।
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